झारखंड

वैदिक पंचांग के अनुसार मां सरस्वती की पूजा का सर्वोत्तम समय सुबह 7:10 से लेकर 9:30 तक :आचार्य मनोज पांडेय  

बरकट्ठा:- प्रखंड क्षेत्र के ग्राम शिलाडीह निवासी आचार्य मनोज पांडेय ने 3 जनवरी को होने वाली विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की पूजा का समय सुबह 7:10 से लेकर 9:30 तक को सर्वोत्तम बताया और कुछ विशेष टिप्स दिए ।उन्होंने बताया कि मां सरस्वती की पूजा मनोभाव से करनी चाहिए।इसके लिए कुछ विधियां ध्यान में रखना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि सुबह स्नान कर पीले रंग के वस्त्र पहने ,पूजा घर/स्थान में साफ सुथरी चौकी पर पीले रंग का आसन सजायें, तत्पश्चात मां सरस्वती एवं गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।उन्हें केसर या पीले चंदन का टीका लगाएं, घी का दीपक जलाएं ,हल्दी, कुंकुम,अक्षत चावल, अर्पित करें, माता के समीप किताबें, वाद्य यंत्र रखें, पीले रंग का फूल और पीले रंग का भोग लगायें जैसे केला, पीले चावल आदि ।मां सरस्वती के मूल मंत्र” ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः” का जाप करें। ज्ञान ,बुद्धि और विवेक की प्राप्ति के लिए दोनो हाथ जोड़कर प्रार्थना करें। जरूरतमंद बच्चों को किताब,पेन,कॉपी आदि दान कर प्रसाद वितरण करें। विदित हो कि श्री पांडेय विगत 25 वर्षों से पूजा पाठ करवाने के लिए इस क्षेत्र में विशेष रूप से जाने जाते हैं ।उन्होंने पूजा पंडालों में बजने वाले अश्लील गानों पर बड़ी चिंता जताई। कहा कि इस दौरान मां सरस्वती के मधुर गीत ही पंडालों में बजनी चाहिए ताकि आसपास के लोगों में भक्ति के भाव का संचार हो। अश्लील गाने बजाना कहीं से भी न्याय संगत नहीं है।

 

मां सरस्वती के संबंध में जानकारी देते हुए प्राथमिक विद्यालय परबता के शिक्षक डॉ दिनेश्वर महतो ने बताया बताया कि एक मान्यता के अनुसार बसंत पंचमी से बसंत ऋतु का शुभारंभ होता है और ठंड से राहत मिलती है। साथ ही इसी दिन मां सरस्वती का जन्म ब्रह्मा जी के कमण्डलु के जल से हुआ था। बसंत ऋतु एवं मां सरस्वती का अवतरण एक साथ होने से इसे बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है।

कहा कि ब्रह्मा जी ने पूरी सृष्टि में उदासीनता को देखकर अपने कमंडलु से जल की कुछ बूंदें गिराया जिससे एक दिव्य देवी उत्पन्न हुई जो जगत में विद्या एवं संगीत की देवी के रूप में विख्यात हुईं। फलस्वरूप सृष्टि में स्वर एवं विद्या के प्रभाव से मधुरता का प्रभाव स्थापित हुआ।

माता को पीले आसन एवं पीले वस्त्र पर बिठा कर पूजन करना श्रेष्ठ कहा गया है। उन्हें सफेद एवं पीले पुष्प अर्पित करना चाहिए। प्रसाद में ऋतुफल,पीली एवं सफेद मिठाई चढ़ाई जाती है।पुराने समय की बात करें तो पहले पंडित जी एवं गुरुजी बच्चों को पेंसिल या खल्ली तथा स्लेट स्पर्श कराकर बच्चों की पढ़ाई प्रारंभ करते थे। आज भी श्रद्धालु गण बच्चों के हाथ मां सरस्वती को कापी भेंट कर विद्यारंभ कराते हैं।

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